तुम से इक दिन कहीं मिलेंगे हम
ख़र्च ख़ुद को तभी करेंगे हम
इश्क़! तुझ को ख़बर भी है? अब के
तेरे साहिल से जा लगेंगे हम
किस ने रस्ते में चाँद रक्खा है
उस से टकरा के गिर पड़ेंगे हम
आसमानों में घर नहीं होते
मर गए तो कहाँ रहेंगे हम
धूप निकली है तेरी बातों की
आज छत पर पड़े रहेंगे हम
जो भी कहना है उस को कहना है
उस के कहने पे क्या कहेंगे हम
रोक लेंगे मुझे तिरे आँसू
ऐसे पानी पे क्या चलेंगे हम
वो सुनेगी जो सुनना चाहेगी
जो भी कहना है वो कहेंगे हम
تم سے اک دن کہیں ملیں گے ہم
خرچ خود کو تبھی کریں گے ہم
عشق! تجھ کو خبر بھی ہے؟ اب کے
تیرے ساحل سے جا لگیں گے ہم
کس نے رستے میں چاند رکھا ہے
اس سے ٹکرا کے گر پڑیں گے ہم
آسمانوں میں گھر نہیں ہوتے
مر گئے تو کہاں رہیں گے ہم
دھوپ نکلی ہے تیری باتوں کی
آج چھت پر پڑے رہیں گے ہم
جو بھی کہنا ہے اس کو کہنا ہے
اس کے کہنے پہ کیا کہیں گے ہم
روک لیں گے مجھے ترے آنسو
ایسے پانی پہ کیا چلیں گے ہم
وہ سنے گی جو سننا چاہے گی
جو بھی کہنا ہے وہ کہیں گے ہم
جو بھی کہنا ہے وہ کہیں گے ہم
स्वप्निल तिवारी
स्रोत:
- Chand Dinner per Baitha Hai
- पृष्ठ संख्या: 33
- Swapnil Tiwari
- प्रकाशन: Anybook, Gurgaon
- संस्करण: 2015
- प्रकाशन वर्ष: 2015
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