ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा फरीहा नक़वी



मिरी ज़ात के सुकूँ जा
थम जाए कहीं जुनूँ जा
रात से एक सोच में गुम हूँ
किस बहाने तुझे कहूँ जा
हाथ जिस मोड़ पर छुड़ाया था
मैं वहीं पर हूँ सर निगूँ जा
याद है सुर्ख़ फूल का तोहफ़ा?
हो चला वो भी नील-गूँ जा
चाँद तारों से कब तलक आख़िर
तेरी बातें किया करूँ जा
अपनी वहशत से ख़ौफ़ आता है
कब से वीराँ है अंदरूँ जा
इस से पहले कि मैं अज़िय्यत में
अपनी आँखों को नोच लूँ जा
देख! मैं याद कर रही हूँ तुझे
फिर मैं ये भी कर सकूँ जा

اے مری ذات کے سکوں آ جا ت
ھم نہ جائے کہیں جنوں آ جا
رات سے ایک سوچ میں گم ہوں
کس بہانے تجھے کہوں آ جا
ہاتھ جس موڑ پر چھڑایا تھا
میں وہیں پر ہوں سر نگوں آ جا
یاد ہے سرخ پھول کا تحفہ؟
ہو چلا وہ بھی نیلگوں آ جا
چاند تاروں سے کب تلک آخر
تیری باتیں کیا کروں آ جا
اپنی وحشت سے خوف آتا ہے
کب سے ویراں ہے اندروں آ جا
اس سے پہلے کہ میں اذیت میں
اپنی آنکھوں کو نوچ لوں آ جا
دیکھ! میں یاد کر رہی ہوں تجھے
پھر میں یہ بھی نہ کر سکوں آ جا

फ़रीहा नक़वी

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