दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाऊ तो क्या?
मैं तन्हा था, मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या, न आओ तो क्या?
दिल ही थे हम दुखे हुए
तुमने दुःखा लिया तो क्या?
जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सब्बा खिलाओ तो क्या?
हे यूँ भी ज़ियाँ और यूँ भी ज़ियाँ
ज़ी जाऊ तो क्या, मर जाऊ तो क्या?
कुछ दिन तो बसों मेरी आँखों में
फिर ख़्वाब अगर बन जाओ तो क्या?
'मनन' वो भी तो बे'नाम हुए
हमको सता लिया तो क्या?
संदीप मनन
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