Barish Me Ek Ladka Jo Khulkar Rota Hai


मैंने वस्ल की रात भी इक मज़मून लिखा था वहशत पर।
और वो लड़की हिज्र की शब भी पूरी पूरी काटती है।

देह्ली में हूं और यहां पर बाक़ी सब तो ठीक है पर।
बोझल कारों के जिस्मों से आती गर्मी काटती है।

मैंने छुरी से अपने हाथ की नस काटी नादानी में।
मैं तो बस ये देख रहा था कितनी गहरी काटती है।

मैं जंगल में बंसी बजाने की ख़ातिर जाता हूं बस।
वो लक्कड़हारे की बेटी है और लकड़ी काटती है।

जन्मदिवस पर केक नहीं था, बस वो और इक कमरा था।
फिर वो अपनी उंगली से इस जिस्म की मिट्टी काटती है।

बारिश के मौसम में इक लड़का जो खुलकर रोता है।
और इक अलहड़ सी लड़की जो छत पर मस्ती काटती है।

मेरे बरहना जिस्म की तअबीरें करते हुये अकसर वो।
अपने पिस्तानों को छूकर अपनी उंगली काटती है।

जिसको तुमने मज़हब कह कर अपने सर पर रक्खा है।
यारों मेरे पैर में तो अकसर ये जूती काटती है।

माँ ने ख़ुदा के काम में कैसे कैसे टांग अड़ाई है।
सिल के नीचे झाड़ू रख देती है आँधी काटती है।

میں نے وصل کی رات بھی اک مضمون لکھا تھا وحشت پر
اور وہ لڑکی ہجر کی شب بھی پوری پوری کاٹتی ہے

دہلی میں ہوں اور یہاں پر باقی سب تو ٹھیک ہے پر
بوجھل کاروں کے جسموں سے آتی گرمی کاٹتی ہے

میں نے چھری سے اپنے ہاتھ کی نس کاٹی نادانی میں
میں تو بس یہ دیکھ رہا تھا کتنی گہری کاٹتی ہے

میں جنگل میں بنسی بجانے کی خاطر جاتا ہوں بس
وہ لکڑہارے کی بیٹی ہے اور لکڑی کاٹتی ہے

جنم دوس پر کیک نہیں تھا، بس وہ اور اک کمرہ تھا
پھر وہ اپنی انگلی سے اس جسم کی مٹی کاٹتی ہے

بارش کے موسم میں اک لڑکا جو کھلکر روتا ہے
اور اک الھڑ سی لڑکی جو چھت پر مستی کاٹتی ہے

میرے برہنہ جسم کی تعبیریں کرتے ہوئے اکثر وہ
اپنے پستانوں کو چھو کر اپنی انگلی کاٹتی ہے

جس کو تم نے مذہب کہہ کر اپنے سر پر رکھا ہے
یاروں میرے پیر میں تو اکثر یہ جوتی کاٹتی ہے

ماں نے خدا کے کام میں کیسے کیسے ٹانگ اڑائی ہے
سل کے نیچے جھاڑو رکھ دیتی ہے آندھی کاٹتی ہے

- سرمد

- नईम  सरमद

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